Saturday, July 11, 2015

"औरतों की दुहरी मानसिकता"

"औरतों की दुहरी मानसिकता"

पति के घर में प्रवेश करते
ही पत्नी का गुस्सा फूट पड़ा ‘‘ पूरे
दिन
कहाँ रहे? आफिस में
पता किया वहाँ भी नहीं पहुँचे।
मामला क्या है?‘‘
‘‘ वो-वो……….मैं……… .
पति की हकलाहट पर झल्लाते हुए
पत्नी फिर
बरसी‘‘ बोलते नही? कहां चले गये थे।
ये गंन्दा बक्सा और
कपड़ों की पोटली किसकी उठा लाये?‘‘
‘‘ वो मैं माँ को लाने गाँव
चला गया था।‘‘
पति थोड़ी हिम्मत करके बोला।
‘‘ क्या कहा,
तुम्हारी मां को यहां ले आये?

शर्म नहीं आई तुम्हें। तुम्हारे भाईयों के
पास इन्हे क्या तकलीफ है?

‘‘ आग
बबूला थी पत्नी, इसलिये उसने पास
खड़ी फटी सफेद साड़ी से आँखें
पोंछती बीमार वृद्धा की तरफ
देखा तक
नहीं।

‘‘इन्हें मेरे भाईयों के पास
नहीं छोड़ा जो सकता। तुम समझ
क्यों नहीं रहीं।‘‘ पति ने दबीजुबान
से कहा।

‘‘क्यों, यहाँ कोई कुबेर
का खजाना रखा है?

तुम्हारी सात हजार
रूपल्ली की पगार में
बच्चों की पढ़ाई और घर खर्च कैसे
चला रही हूँ मैं ही जानती हूँ ‘‘
पत्नी का स्वर
उतना ही तीव्र था।

‘‘अब ये हमारे पास ही रहेगी।‘‘पति ने
कठोरता अपनाई।

‘‘ मैं कहती हूँ इन्हें इसी वक्त वापिस
छोड़ कर
आओ। वरना मैं इस घर में एक पल
भी नहीं रहूंगी और इन
महारानीजी को भी यहाँ आते
जरा भी लाज नहीं आई।

‘‘कह कर औरत
की तरफ
देखा तो पाँव तले से जमीन सरक गयी।
झेंपते हुए
पत्नी बोली।

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‘‘मां तुम!‘‘

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‘‘हाँ बेटा! तुम्हारे भाई और भाभी ने
मुझे घर से
निकाल दिया। दामाद
जी को फोन
किया तो ये मुझे यहां ले आये।

‘‘
बुढ़िया ने
कहा तो पत्नी ने गद्गद्
नजरों से पति की तरफ देखा और
मुस्कराते हुए
बोली।

‘‘ आप भी बड़े वो हो डार्लिंग, पहले
क्यों नहीं बतायाकि मेरी मां को लाने
गये
थे।‘‘....

इतना शेयर करो कि हर औरत तक पाहुंच जाये ....
10/10/14 2:18:13 pm: Mona: पिछले हफ्ते मेरी पत्नी को बुखार था। पहले दिन
तो उसने
बताया ही नहीं कि उसे बुखार है, दूसरे दिन जब
उससे सुबह
उठा नहीं गया तो मैंने यूं ही पूछ
लिया कि तबीयत खराब है
क्या?
उसने कहा कि नहीं, तबीयत खराब तो नहीं है,
हां थोड़ी थकावट है।
मैं चुपचाप अखबार पढ़ने में मशगूल हो गया। जरा देर
से उस
दिन वो जगी और फटाफट उसने मेरे लिए चाय
बनाई,
बिस्किट दिए और मैं अखबार पढ़ते-पढ़ते चाय
पीता रहा।मुझे
पता लग चुका था कि उसे थोड़ा बुखार है, और ये
बात मैंने
उसे छू कर समझ भी ली थी।
खैर, मैं यही सोचता रहा कि मामूली बुखार है,
शाम तक ठीक
हो जाएगा।
उसने थोड़ें बुखार में ही मेरे लिए नाश्ता तैयार
किया।
नाश्ता करते हुए मैंने उसे बताया कि आज
खाना बाहर है,
इसलिए तुम खाना मत बनाना। उसने धीरे से
कहा कि अरे
ऐसी कोई बात नहीं, खाना तो बना दूंगी। लेकिन
मैंने
कहा कि नहीं, नहीं दफ्तर की कोई मीटिंग है,
उसके बाद
खाना बाहर ही है।फिर मैं तैयार होकर निकल
गया।
मैं पुरुष हूं। पुरुष मजबूत दिल के होते हैं।
ऐसी मामूली बीमारी से पुरुष विचलित नहीं होते।
मैं दफ्तर
चला गया, फिर अपनी मीटिंग में मुझे ध्यान
भी नहीं रहा कि पत्नी की तबीयत सुबह ठीक
नहीं थी। खैर,
शाम को घर
आया, तो वो लेटी हुई थी। उसे लेटे देख कर
भी दिमाग में एक
बार नहीं आया कि यही पूछ लूं कि कैसी तबीयत
है?
वो लेटी रही, मैंने अपने कपड़े बदले और पूछ
बैठा कि खाना?
पत्नी ने मेरी ओर देखा और लेटे-लेटे उसने
कहा कि अभी उठती हूं, बस अब ठीक हूं। जैसे
ही उसने
कहा कि मैं ठीक हूं, मुझे ध्यान आ गया कि अरे
सुबह तो उसे
बुखार था। खैर, अपनी शर्मिंदगी छिपाते हुए मैंने
कहा कि कोई
बात नहीं, तुम लेटी रहो। मैं रसोई में गया, मैंने
अंदाजा लगाया कि उसने दोपहर में
खाना नहीं खाया,
क्योंकि खाना तो बना ही नहीं।
मैंने फ्रिज से कुछ-कुछ निकाला, उसके लिए ब्रेड
जैम
लिया और अपने पति धर्म को निभाते हुए, खुद पर
गर्व करते
हुए उसके आगे खाने की प्लेट कर दी। पत्नी ने ब्रेड
का एक
टुकड़ा उठाया, मुझे आंखों से धन्यवाद कहा, और मन
से
कहा कि पति हो तो ऐसा हो, इतनी केयर करने
वाला।
मैंने एक दो बार यूं ही पूछ लिया कि तुम कैसी हो,
कोई दवा दूं
क्या? और अपने कम्यूटर आदि को देखता हुआ
सो गया।
पत्नी अगली सुबह जल्दी उठ गई, मुझे
लगा कि वो ठीक
हो गई है, और मैंने फिर उसके बुखार पर
चर्चा नहीं की। मैंने
मान लिया कि वो ठीक हो गई है।
कल मुझे सर्दी हो गई थी। दो तीन बार छींक आ
गई थी। घर
गया तो पत्नी ने कहा कि तुम्हारी तो तबीयत
ठीक नहीं है।
उसने सिर पर हाथ रखा, और कहा कि बुखार
तो नहीं है,
लेकिन गला खराब लग रहा है।ऐसा करो तुम लेट
जाओ, मैं
सरसों का तेल गरम करके छाती में लगा देती हूं।
मैंने एक दो बार कहा कि नहीं-नहीं ऐसी कोई
बात नहीं।लेकिन
पत्नी ने मुझे कमरे में भेज ही दिया। मैं बिस्तर पर
लेटा ही था कि मेरे लिए शानदार काढ़ा बन कर
आ गया। अब
मेरा गला खराब था तो काढ़ा बनना ही था।
काढ़ा पी कर लेट
गया। फिर दस मिनट में गरमा गरम सूप सामने आ
गया। उसने
कहा कि गरम सूप से गले को पूरी राहत मिलेगी।सूप
पिया तो वो मेरे पास आ गई, और मेरे सिर
को सहलाने लगी।
कहने लगी कि इतनी तबीयत खराब है, इतना काम
क्यों करते
हो?
बचपन में जब कभी मुझे बुखार होता था,
मां सारी रात मेरे
सिरहाने बैठी रहती। मैं सोता था,
वो जागती थी। आज मैं
लेटा हुआ था, मेरी पत्नी मेरा सिर
सहला रही थी।
मैं धीरे-धीरे सो गया। जागा तो वो गले पर विक्स
लगा रही थी। मेरी आंख खुली तो उसने पूछा, कुछ
आराम
मिल रहा है? मैंने हां में सिर हिलाया।तो उसने
पूछा कि खाना खाओगे?
मुझे भूख लगी थी, मैंने कहा,"हां।"
उसने फटाफट रोटी, सब्जी, दाल, चटनी, सलाद मेरे
सामने
परोस दिए, और आधा लेटे-लेटे मेरे मुंह में कौर
डालती रही।
मैने चुपचाप खाना खाया, और लेट गया। पत्नी ने
मुझे अपने
हाथों से खिला कर खुद को खुश महसूस किया और
रसोई में
चली गई।
मैं चुपचाप लेटा रहा। सोचता रहा कि पुरुष भी कैसे
होते हैं?
कुछ दिन पहले मेरी पत्नी बीमार थी, मैंने कुछ
नहीं किया था।
और तो और एक फोन करके उसका हाल
भी नहीं पूछा।
उसने पूरे दिन कुछ नहीं खाया था, लेकिन मैंने उसे
ब्रेड परोस
कर खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा था। मैंने ये
देखने
कीकोशिश भी नहीं की कि उसे वाकई
कितना बुखार था। मैंने
ऐसा कुछ नहीं किया कि उसे लगे कि बीमारी में
वो अकेली नहीं।
लेकिन मुझे सिर्फ जरा सी सर्दी हुई थी, और
वो मेरी मां बन
गई थी।
मैं सोचता रहा कि क्या सचमुच महिलाओं
को भगवान एक
अलग दिल देते हैं? महिलाओं में जो करुणा और
ममता होती है
वो पुरुषों में नहीं होती क्या?
सोचता रहा, जिस दिन मेरी पत्नी को बुखार था,
उस दोपहर
जब उसे भूख लगी होगी और वो बिस्तर से उठ न
पाई होगी,
तो उसने भी चाहा होगा कि काश
उसका पति उसके पास
होता?
मैं चाहे जो सोचूं, लेकिन मुझे लगता है कि हर पुरुष
को एक
जनम में औरत बन कर ये समझने की कोशिश
करनी ही चाहिए कि सचमुच कितना मुश्किल
होता है, औरत
होना। मां होना, बहन होना, पत्नी होना।

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